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श्रीराम स्तोत्र
श्रीरघुवीरगद्यम्
श्रीमद्वेदान्तदेशिककृतं महावीरवैभवम्
श्रीमान् वेन्कटनाथार्यः कवितार्किककेसरी
वेदान्ताचार्यवर्यो मे सन्निधत्तां सदा हृदि ।
जयत्याश्रितसंत्रास-ध्वान्त-विद्ध्वंसनोदयः
प्रभावान् सीतया देव्या परमव्योमभास्करः॥
जय जय महावीर महाधीरधौरेय, देवासुरसमरसमय-
समुदित-निर्ज्जरनिर्द्धारित-निरवधिक-माहात्म्य,
दशवदनदमित-दैवतपरिषदभ्यर्थित-दाशरथिभाव,
दिनकरकुलकमलदिवाकर, दिविषदधिपति-
रणसहचरणचतुर-दशरथ-चरमऋण-विमोचन,
कोसलसुता-कुमारभाव-कञ्चुकित-
कारणाकार, कौमारकेलि-गोपायित-
कौशिकाध्वर-रणाध्वरधुर्य-
भव्यदिव्यास्त्रबृन्द्ववन्दित,
प्रणतजन-विमतविमथन-
दुर्ललितदोर्ललित, तनुतर-विशिखविताडन-विघटित-
विशरारुशरारुताटकाताटकेय,
जडकिरणशकलधर-जटिल-नटपति-मुकुटतट-नटनपटु-
विबुधसरिदतिबहुल-मधुगलन-ललितपदनलिनरज-
उपमृदित-निजवृजिन-जहदुपलतनु-
रुचिरपरममुनिवरयुवतिनुत,
कुशिकसुतकथित-विदितनवविविधकथ,
मैथिलनगर-सुलोचना-लोचन-चकोरचन्द्र,
खण्डपरशु-कोदण्ड-प्रकाण्ड-खण्डनशौण्ड-भुजदण्ड,
चण्डकरकिरण-पुण्डरीकवनरुचिलुण्ठकलोचन,
मोचित-जनकहृदय-शङ्कातङ्क,
परिहृत-निखिलनरपतिवरण-
जनकदुहितृ-कुचतटविहरण-समुचितकरतल,
शतकोटिशतगुणकठिन-परशुधर-मुनिवरकरधृत-दुरवनतम-
निजधनुराकर्षण-प्रकाशित-पारमेष्ठ्य,
क्रतुहरशिखरिकन्दुकविहृत्युन्मुख-
जगदरुन्तुद-जितहरिदन्त-दिगिभदन्त-दन्तुरोरोन्त-
दशवदनदमनकुशल-दशशतभुजनृपतिकुल-रुधिरझरभरित-
पृथुतरतटाक-तर्पितपितृक-भृगुपतिसुगति-वहतिकर,
नतपरिडिषुपरिघ, अनृतभयमुषितहृदय-पितृवचनपालन-
प्रतिज्ञावज्ञात-यौवराज्य, निषादराजसौहृदसूचित-
सौशील्यसागर,भरद्वाजशासनपरिगृहीत-विचित्रचित्रकूट-
गिरिकटकतट-रम्यावास, अनन्यशासनीय,
प्रणतभरत-मकुटतटघटित-पादुकाऽग्र्याभिषेकनिर्वर्तित-
सर्वलोकयोगक्षेम, पिशितरुचि-विहितदुरित-वलमथनतनय-
बलिभुगनुगति-सरभस-तृणशकल-परिपतन-भयचकित-
सकलसुरमुनि-बहुमत-महास्त्रसामर्थ्य, द्रुहिणहरवलमथन-
दुरालक्ष्यशरलक्ष्य,दण्डकातपोवन-जंगमपारिजात,
विराधहरिणशार्दूल, विलुलित-बहुफलमखकलम-
रजनिचरमृग-मृगयारंभ-संभृत-चीरभृदनुरोध,
त्रिशिरश्शिरस्त्रितय-तिमिरनिरास-वासरकर,
दूषण-जलनिधि-शोषण-तोषित-ऋषिगण-घोषित-
विजयघोषण, खरतर-खरतरु-खण्डन-चण्डपवन,
द्विस्सप्तरक्षस्सहस्र-नलवनविलोडनमहाकलभ,
असहायशूर, अनपायसाहस, महितमहामृधदर्शन-
मुदित-मैथिली-दृढतर-परिरंभणविभव-विरोपित-
विकटवीरव्रण, मारीच-मायामृगचर्म-परिकर्मित-
निर्भर-दर्भास्तरण, विक्रम-यशोलाभ-विक्रीतजीवित-
गृध्रराजदेह-दिधक्षालक्षित-भक्तजनदाक्षिण्य,
कल्पित-विबुधभाव-कबन्धाभिनन्दित,
अवन्ध्यमहिम-मुनिजनभजनमुषित-हृदयकलुष,
शबरीमोक्ष-साक्षिभूत,
प्रभंजनतनयभावुकभाषितरंजितहृदय,
तरणिसुत-शरणागति-परतन्त्रीकृत-स्वातन्त्र्य,
दृढघटित-कैलासकोटिविकट-दुन्दुभिकङ्कालकूट-
दूरविक्षेपदक्ष-दक्षिणेतर-पदांगुष्ठ-दरचलन-विश्वस्त-
सुहृदाशय, अतिपृथुल-बहुविटपिगिरिधरणि-
विवरयुगपदुदय-चित्रपुङ्खवैचित्र्य-विपुलभुज,
शैलमूल-निबिडनिपीडित-रावण-रणरणकजनक-
चतुरुदधिविहरण-चतुरकपिकुलपति-हृदय-
विशालशिलातल-दारण-दारुण-शिलीमुख,
अपारपारावार-परिघापरिवृत-परपुरपरिसृत-
दवदहनजवन-पवनभवकपिवर-परिष्वंगभावित-
सर्वस्वदान,अहितसहोदर-रक्षःपरिग्रह-विसंवादि-
विविध-सचिव-विप्रलंभसमय-संरंभ-समुज्जृंभित-
सर्वेश्वरभाव, सकृत्प्रपन्न-जनसंरक्षण-दीक्षित,
हे वीर!, सत्यव्रत, प्रतिशयन-भूमिका-भूषित-
पयोधिपुलिन, प्रलयशिखिपरुष-विशिखशिखा-
शोषिताकूपार-वारिपूर, प्रबलरिपु-कलहकुतुक-
चटुलकपिकुल-करतलतुलितहृत-गिरिनिकर-
साधित-सेतुपथसीमा-सीमन्तित-समुद्र,
द्रुततर-तरुमृगवरूथिनी-निरुद्ध-लंकावरोध,
वेपथु-लास्यलीलोपदेश-देशिक-धनुर्ज्याघोष,
गगनचर-कनकगिरि-गरिमधर-निगममय,
निजगरुड-गरुदनिललव-गलित-विषवदन-शरकदन,
अकृतचरवनचर, रणकरण-वैलक्ष्य-कूणिताक्ष-
बहुविध-रक्षोबलाध्यक्ष-वक्षःकवाट-पाटनपटिम-
साटोप-कोपावलेप, कटुरटदटनिटंकृति चटुलकठोर,
कार्मुकविनिर्गत-विशंकट-विशिख-विताडन-
विघटितमकुट-विह्वल-विश्रवस्तनय-विश्रमसमय-
विश्राणन-विख्यातविक्रम, कुंभकर्ण-कुलगिरि-
विदलन-दंभोलिभूत-निश्शंक-कंकपत्र,
अभिचरण-हुतवह-परिचरण-विघटन-सरभस-
परिपतदपरिमित-कपिबल-जलधिलहरि-
कलकलरवकुपित-मघवजिदभिहनन-
कृदनुजसाक्षिक-राक्षसद्वंद्वयुद्ध,
अप्रतिद्वंद्वपौरुष, त्र्यंबकसमधिक-घोरास्त्राडंबर-
सारथिहृतरथ-सत्रपशात्रव-सत्यापितप्रताप,
शितशरकृतलवन-दशमुख-मुखदशकनिपतन-
पुनरुदयनिपतन-दरगलित जनित
दरतरलहरिहयनयन-नलिनवनरुचिखचित-
निपतित सुरतरुकुसुमवितति-सुरभित-
रथपथ,अखिलजगदधिकभुजबल-
वरबल-दशलपन-लपनदशकलवन-जनितकदन-
परवश-रजनिचरपति-युवतिविलपन-वचनसम-
विषय-निगमनिकरशिखर-मुखमुनिवरपरिपणित,
अभिगत-शतमख-हुतवह-पितृपति-निरृति-वरुण-
पवन-धनद-गिरिशप्रमुख-सुरपतिनुतिमुदित,
अमितमति-विधिविदित-कथितनिज-
विभवजलधि-पृषतलव-विगतभय-विबुध-विबोधित-
वीरशयन-शायित-वानरपृतनौघ,
स्वसमय-विघटित-सुघटित-सहृदय-
सहधर्मचारिणीक,विभीषणवशंवदीकृत-लंकैश्वर्य,
निष्पन्नकृत्य, खपुष्पितरिपुपक्ष, पुष्पक-रभसगति-
गोष्पदीकृतगगनार्णव,
प्रतिज्ञार्णव-तरणकृतक्षण-भरतमनोरथसंहित-
सिंहासनाधिरूढ, स्वामिन्, राघवसिंह,
हाटकगिरिकटक-पादपीठनिकटतट-परिलुठित-निखिल-
किरीटकोटि-विविधमणिगण-किरणनिकर-नीराजित-
चरणराजीव, दिव्यभौमायोध्याधिदैवत,
पितृवधकुपित-परशुधरमुनि-विहित-नृपहननकदन-
पूर्वकालप्रभव-शतगुणप्रतिष्ठापित-धार्मिकराजवंश,
शुभचरितरत-भरतखर्वितगर्व-गन्धर्वयूथगीत-
विजयगाथाशत, शासितमधुसुत-शत्रुघ्नसेवित,
कुशलवपरिगीत-कुलगाथाविशेष,
विधिवशपरिणमदमरफणिति-कविवररचित-
निजचरित-निबन्धन-निशमन-निर्वृत,
सर्वजनसम्मानित, पुनरुपस्थापित-विमानवर-
विश्राणन-प्रीणित-वैश्रवण-विश्रावित-यशःप्रपञ्च,
पञ्चताऽऽपन्न-मुनिकुमारक-सञ्जीवनामृत,
त्रेतायुग-प्रवर्तित-कार्तयुगवृत्तान्त,
अविकल-बहुसुवर्ण-हयमखसहस्र-निर्वहण-
निर्वर्तित-निजवर्णाश्रमधर्म,
सर्वकर्मसमाराध्य-सनातनधर्म,
साकेतजनपदजनिधनिकजङ्गम-तदितर-
जन्तुजात-दिव्यगतिदानदर्शित-
नित्यनिस्सीमवैभव, भवतपनतापित-भक्तजन-
भद्राराम, श्रीरामभद्र, नमस्ते पुनस्ते नमस्ते॥
चतुर्मुखेश्वरमुखैः पुत्रपौत्रादिशालिने ।
नमस्सीतासमेताय रामाय गृहमेधिने॥
कविकथकसिंहकथितं
कठोरसुकुमारगंभीरम् ।
भवभयभेषजमेतत् पठत
महावीरवैभवं सुधियः॥
कवितार्किकसिंहाय
कल्याणगुणशालिने ।
श्रीमते वेङ्कटेशाय
वेदन्तगुरवे नम:॥
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